संसाधन का अर्थ , वर्गीकरण, आवश्यकता एवं संरक्षण के उपाय
Meaning of resource, classification, requirement and measures of conservation
संसाधन का अर्थ (Meaning of Resources)
“संसाधन “ शव्द अंग्रेज़ी के रिसोर्स का पर्याय है जिसका अर्थ है साधन , सम्पति , युक्ति | अंग्रेज़ी का रिसोर्स शब्द दो शब्दों के योग से बना है , अर्थात “रि +सोर्स “ | रि का अर्थ होता है पुन:/पुनर /प्रति तथा सोर्से का अर्थ होता है साधन /स्रोत अथवा वह पदार्थ या वस्तु जो की मनुष्य को पुन: बार बार सहायता प्रदाय करते है आवश्कताओ की पूर्ति करते है “संसाधन “ कहलाते है |
हमारे पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वह वस्तु ‘संसाधन’ है जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा सकती है और जिससे अन्य वस्तुओं को बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग होता है तथा जो अधिक रूप से सम्भाव्य और सांस्कृतिक रूप से मान्य है। संसाधन मानवीय क्रियाओं का परिणाम है। मानव स्वयं संसाधनों का महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह पर्यावरण में पाये जाने वाले पदार्थों को संसाधनों में परिवर्तित करता है तथा उन्हें प्रयोग करता है।
संसाधन की परिभाषा (Definition of resource) –
जेम्स फिशर के अनुसार– “ संसाधन ऐसी कोई भी वस्तु है ,जो मनुष्य की आवश्कताओ एवं इच्छाओं की पूर्ति करती है |”
संसाधनों के प्रकार या वर्गीकरण (Types or Classification Of Resource )
A.समाप्यता के आधार पर-नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन
B. उत्पत्ति के आधार पर– जैव और अजैव संसाधन
C. स्वामित्व के आधार पर: व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संसाधन
D.विकास के स्तर के आधार पर– संभावी, विकसित, भंडार और संचित कोष
A.समाप्यता के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण
(Classification of resource on the basis of Exhaustible)
1. नवीकरण योग्य संसाधन (Renewable Resource) :– वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुन: उत्पन्न किया जा सकता है। ऐसे संसाधन को नवीकरण योग्य संसाधन कहते हैं। उदाहरण: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, जीव जंतु, आदि।
2. अनवीकरण योग्य संसाधन (Non Renewable Resource) :– वे संसाधन ऐसे होते हैं जिन्हें हम किसी भी तरीके से नवीकृत या पुन: उत्पन्न नहीं कर सकते हैं। ऐसे संसाधन को अनीवकरण योग्य संसाधन कहते हैं। उदाहरण: खनिज और जीवाश्म ईंधन , धातु, आदि। इन संसाधनों का विकास एक लम्बे भू-वैज्ञानिक अंतराल में होता है। इसलिए इनका नवीकरण करना असंभव होता है। इनमें से कुछ संसाधनों को पुन: चक्रीय किया जा सकता है, जैसे कि धातु। कुछ ऐसे संसाधन भी होते हैं जिनका पुन: चक्रीकरण नहीं किया जा सकता है, जैसे जीवाश्म ईंधन।
B.उत्पत्ति के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण
(Classification of resource on the basis of Origin)
1. जैव संसाधन ( Biotic Resource):– इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमंडल से होती है। इनमें जीवन व्याप्त है, उदाहरण: मनुष्य, वनस्पति, मछलियाँ, प्राणिजात, पशुधन, आदि।
2. अजैव संसाधन (A biotic Resource):- वे सारे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण- चट्टानें और धातुएँ, मिट्टी, हवा, पानी आदि।
C.स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण
(Classification of resource on the basis of Ownership)
1. व्यक्तिगत संसाधन( Individual Resource):- ऐसे संसाधन व्यकतिगत संसाधन कहलाते हैं जिनका स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है। उदाहरण: किसी किसान की जमीन, घर, आदि।
2. सामुदायिक संसाधन (Community owned Resource):- ऐसे संसाधन सामुदायिक संसाधन कहलाते हैं जिनका स्वामित्व समुदाय या समाज के पास होता है। उदाहरण – चारण भूमि, श्मशान भूमि, तालाब, सार्वजनिक पार्क, पिकनिक स्थल आदि।
3. राष्ट्रीय संसाधन(National Resource):- ऐसे संसाधन राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं जिनका स्वामित्व राष्ट्र के पास होता है। उदाहरण: सरकारी जमीन, सड़क, नहर, रेल, आदि।
4. अंतर्राष्ट्रीय संसाधन (International Resource):– ऐसे संसाधन अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहलाते हैं जिनका नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है। इसे समझने के लिये समुद्री क्षेत्र का उदाहरण लेते हैं। किसी भी देश की तट रेखा से 200 किमी तक के समुद्री क्षेत्र पर ही उस देश का नियंत्रण होता है। उसके आगे के समुद्री क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय संसाधन की श्रेणी में आता है।
D.विकास के स्तर के आधार पर संसाधन का वर्गीकरण
(Classification of resource on the basis of Status of Development)
1. संभावी संसाधन (Potential Resource):- वह संसाधन हैं जो किसी भी देश या क्षेत्र में कुछ ऐसे संसाधन होते हैं जिनका उपयोग वर्तमान में नहीं हो रहा होता है। उदाहरण – पश्चिमी भाग, विशेषकर राजस्थान और गुजरात में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की अपार सम्भावना है।इन्हें संभावी संसाधन कहते हैं।
2. विकसित संसाधन (Developed Resource):- वह संसाधन जिसका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है।ऐसे संसाधन विकसित संसाधन कहलाते हैं |
3. भंडार (Stock):- ऐसे संसाधन होते हैं जो पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं परंतु उपयुक्त टेक्नॉलोजी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर हैं। ऐसे संसाधन को भंडार कहते हैं। उदाहरण – हाइड्रोजन ईंधन ,अभी हमारे पास हाईड्रोजन ईंधन के इस्तेमाल लिये उचित टेक्नॉलोजी नहीं है।और यह ऊर्जा का मुख्य श्रोत बन सकता है।
4. संचित कोष (Reserves):- यह संसाधन भण्डार का ही हिस्सा है, जिन्हें उपलब्ध टेक्नॉलोजी की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है परन्तु इनका उपयोग अभी आरम्भ नहीं हुआ है। उदाहरण: नदी के जल से पनबिजली परियोजना द्वारा बिजली निकाली जा सकती है। लेकिन वर्तमान में इसका इस्तेमाल सीमित पैमाने पर ही हो रहा है। इसके साथ वैश्विक पारिस्थितिकी संकट जैसे भूमण्डलीय ताप, ओजोन परत इत्यादि।
संसाधन संरक्षण या संसाधन नियोजन-
संसाधनों के दोहन से कई सामाजिक और आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। संसाधन संरक्षण का अभिप्राय संसाधनों के नियोजित, विवेकपूर्ण मितव्यययतापूर्ण, पुनर्भरण क्षमतानुसार विनाश रहित उपयोग से है। कई राज्यों के पास प्रचुर मात्रा में खनिज तो अन्य संसाधनों का अभाव है। झारखंड में खनिजों के प्रचुर भंडार हैं लेकिन वहाँ पेय जल और अन्य सुविधाओं का अभाव है। मेघालय में जल की कोई कमी नहीं है लेकिन वहाँ अन्य संसाधनों का अभाव है। इसलिए इन क्षेत्रों का सही विकास नहीं हो पाया है। ऐसे में होने वाली समस्या को हम संसाधनों के विवेकपूर्ण इस्तेमाल से ही कम कर सकते हैं।
संसाधन संरक्षण की आवश्यकता
मानव के सतत् विकास के लिए विभिन्न प्रकार के संसाधनों का उपयोग आवश्यक है और संसाधनों का लम्बे समय तक उपयोग करने के लिए इनका संरक्षण भी आवश्यक है। हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए संसाधन बचाये रखना हमारा कर्तव्य है। पृथ्वी पर संसाधन सीमित मात्रा में ही हैं। यदि उनके अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक नहीं लगती है तो भविष्य में मानव जाति के लिये कुछ भी नहीं बचेगा। फिर हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा।
अतः संसाधन संरक्षण आवश्यक है। जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से नगरीयकरण, औद्योगीकरण और वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई से पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ संसाधन भी समाप्त होते जा रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से भूमि, जल, वायु आदि ने अपनी गुणवत्ता खो दी है। आज पारिस्थितिकी तंत्र में असन्तुलन के कारण ओजोन परत में छिद्र, ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि, जीव विनाश और मानव की कार्य क्षमता में कमी हुई है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि हम संसाधनों का संरक्षण करें।
प्राकृतिक संसाधन संरक्षण के उपाय
- वनों की अत्यधिक कटाई को नियंत्रित करना चाहिए।
- वर्षा के जल की संचयन प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए।
- सौर, जल और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय संसाधनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- कृषि में इस्तेमाल होने वाले पानी को दोबारा उपयोग में लाने की प्रणाली का पालन करना चाहिए।
- वन्य जीवों के संरक्षण के लिए जंगली जानवरों का शिकार करना बंद कर दिया जाना चाहिए।
- किसानों को मिश्रित फसल की विधि, उर्वरक, कीटनाशक और फसल चक्र के उपयोग को सिखाया जाना चाहिए। खाद, जैविक उर्वरक इस्तेमाल को उपयोग मे लाने की जरूरत है।
- जीवाश्म ईधन की खपत को कम करना एक अच्छा तरीका है।
- कागज के उपयोग को सीमित करें और रिसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करें।