Environment, Static GK

पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ तथा घटक व अवयव

पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ तथा घटक व अवयव

पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ तथा घटक व अवयव
(Meaning and Components of the Ecosystem)

पारिस्थितिक  तंत्र ( Ecosystem) या पारितंत्र –

समस्त जीवधारी अपने पर्यावरण के विभिन्न घटकों से क्रिया करते रहते है इसप्रकार  जैविक और अजैविक घटकों के बीच पारस्परिक क्रिया निरंतर चलती रहती है इससे एक तंत्र बनता है जो पारिस्थितिक  तंत्र ( Ecosystem) या पारितंत्र  कहलाता है
वातावरण के सभी जैविक और अजैविक घटकों के पूर्ण समन्वय के बनी एक संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है “
रीटर (Reiter) महोदय  ने 1868  में सर्वप्रथम  “Ecology” शब्द दिया अर्नस्ट हेकल (Ernst Haeckel ) ने  “Oecologie “ शब्द का प्रयोग किया टेंसले ने 1935 में “पारितंत्र (Ecosystem) शब्द का प्रयोग किया था

पारिस्थितिकी तंत्र का अर्थ (Meaning  of the Ecosystem)

अंग्रेजी भाषा का ‘इकोलॉजी’ (Ecology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों oikos और logos से मिलकर बना है। Oikos का अर्थ ‘घर’ (House) या ‘रहने का स्थान’ (Place to live) तथा logos का अर्थ ‘अध्ययन’ (Study) या ‘चर्चा’ (Discussion) है। अतः शाब्दिक अर्थ में पारिस्थितिकी (Ecology) जीवधारियों और उनके आवासों के बीच होने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करता है। इस प्रकार पारिस्थितिकी जीव-विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत जीवों के वातावरण के साथ अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
आर्नेस्ट हैकल ने पारिस्थितिकी को परिभाषित करते हुए लिखा है कि जैविक तथा अजैविक वातावरण के साथ प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का सम्पूर्ण अध्ययन ही पारिस्थितिकी है।’ टायलर ने पारिस्थितिकी की ऐसे विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है जो सभी जीवों के सभी सम्बन्धों का तथा उनके सभी वातावरणों के साथ सम्बन्धों का अध्ययन करता है।
उपरोक्त सभी परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि पारिस्थितिकी प्रकृति में पाये जाने वाले विभिन्न जीव जन्तुओं के आपसी सम्बन्धों के साथ-साथ उनके जीवन को प्रभावित करनेवाले विभिन्न जैविक तथा अजैविक घटकों का अध्ययन करता है।

पारिस्थितिक  तंत्र  के घटक या अवयव ( Component of Ecosystem)  

पारिस्थितिक  तंत्र ( Ecosystem) या पारितंत्र   जिन रचनाओं या वस्तुओं से मिल कर बना होता है उन्हें पारिस्थितिक  तंत्र  के घटक या अवयव ( Component of Ecosystem) कहते है ये घटक दो प्रकार से पारिस्थितिक  तंत्र  की रचना करते है

  1. संरचनात्मक घटक
  2. कार्यात्मक घटक

1.संरचनात्मक घटक संरचनात्मक आधार पर ये दो प्रकार के होते है
(A)जैविक घटक
(B)अजैविक घटक
(A) जैविक घटक (Biotic Component) –  पारिस्थितिक  तंत्र   के जीवित भाग (पादप और जन्तुओं  ) को मिलाकर जैविक घटक बनते हैं पारिस्थितिक तंत्र के जैविक घटकों को पुनः तीन  वर्गों में विभाजित किया जाता  है –

  1. उत्पादक (Producer)
  2. उपभोक्ता (Consumers)
  3. अपघटक (Decomposers)

i) उत्पादक (Producer) – इसके अन्तर्गत वे घटक आते है जो अपना भोजन स्वंय बनते है जैसे हरे पेड़-पौधे ।
हरे पौधे क्लोरोप्लास्ट की सहायता से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा सरल अकार्बनिक पदार्थ (जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड) द्वारा अधिक ऊर्जा युक्त कार्बनिक पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट) के रूप में अपना भोजन बनाते हैं। इसी कारण से हरे पेड़-पौधों को उत्पादक या स्वपोषित (Autotrophs)  कहा जाता है।
ii)उपभोक्ता (Consumers) – इसके  अन्तर्गत वे जीव  आते है जो उत्पादक द्वारा बनाए गए भोज्य पदार्थो का उपभोग करते है  ये  जीव अपना भोजन स्वयं बनाने में असमर्थ होते हैं,उपभोक्ता कहलाते  है। पारिस्थितिक तंत्र के उपभोक्ताओं को तीन  श्रेणियों में रखा गया है

  • प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) – शाकाहारी जन्तुओं को प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता के अन्तर्गत रखा गया है,  ये जीव अपने भोजन के लिए केवल पौधों पर ही आश्रित रहते हैं। जैसे-गाय, बकरी, हिरण, खरगोश आदि।
  • द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary consumers) – मांसाहारी जन्तुओं को द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ता के अन्तर्गत रखा गया है द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन पौधों एवं प्राथमिक उपभोक्ता से प्राप्त करते हैं  इस श्रेणी के उपभोक्ता मांसाहारी (Carnivores)  होते हैं।  जैसे – लोमड़ी  ,भेड़िया आदि।
  • तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers): सर्वाहारी (Omnivores) जन्तुओं को तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता के अन्तर्गत रखा गया है पारिस्थितिक तंत्र के तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता अपना भोजन प्राथमिक और द्वितीयक श्रेणी के उपभोक्ता से प्राप्त करते हैं। जैसे-मेढ़क को खाने वाले साँपों तथा मछलियों को खाने वाली बड़ी मछलियों को तृतीयक श्रेणी का उपभोक्ता कहते हैं। तृतीयक श्रेणी के उपभोक्ता शीर्ष मांसाहारी (Top carnivores) होते हैं, जिन्हें दूसरे जन्तु मारकर नहीं खाते हैं। जैसे- शेर, बाघ, बाज आदि।

iii) अपघटक ( Decomposers ): अपघटक वर्ग के अन्तर्गत सूक्ष्मजीव (Micro-organisms) आते हैं। जैसे- जीवाणु, विषाणु, कवक और प्रोटोजोआ। उत्पादक  ,प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ता  और तृतीयक उपभोक्ता की मृत्यु के पश्चात् सूक्ष्म जीवों के द्वारा इनका अपघटन कर दिया जाता  हैं। ये सूक्ष्मजीव उत्पादक पौधे तथा उपभोक्ता के मृत शरीर से अपना भोजन प्राप्त करने के साथ-साथ जटिल कार्बनिक यौगिक से बने शरीर को साधारण यौगिकों में अपघटित कर देते हैं। ये साधारण यौगिक पुनः उत्पादक द्वारा उपयोग किये जाते हैं। अपघटक को मृतोपजीवी (saprophytes) भी कहा जाता है।
(B) अजैविक घटक ( Abiotic Component): पारिस्थितिक तंत्र  में पाये जाने वाले निर्जीव घटकों को  अजैविक घटक में  रखा जाता है पारिस्थितिक तंत्र  में निम्न अजैविक घटक होते है
(a) अकार्बनिक घटक (Inorganic Compounds) :-  ये कार्बनिक  पदार्थ बनाने में मदद करते है ये कभी समाप्त नही होते । जैसे-  कार्बन , सल्फर ,ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस, कैल्सियम आदि।
(b) कार्बनिक घटक (Organic Compounds): – ये पदार्थ जीवों ( पौधों एवं जन्तुओ  ) के  मृत  अवशेष में होते  है जैसे- प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, ह्यूमस आदि।
(c) जलवायु घटक (Climatic Compounds): – सूर्य का प्रकाश, तापक्रम, वर्षा आदि।

2.कार्यात्मक घटक  – कार्यात्मक घटक पर ये दो प्रकार के होते है

  1. स्वपोषी घटक ( Autotrophic Components )- इसके  अन्तर्गत वे घटक  आते है जो अपना भोजन स्वंय बनते है स्वपोषी  कहलाते है जैसे हरे पेड़-पौधे ।
  2. विषमपोषी या परपोषी घटक ( Heterotrophic Components )- इसके  अन्तर्गत वे घटक  आते है जो अपना भोजन स्वंय नही बना सकते है जो अपने भोजन के लिए दूसरे जीवों पर निर्भर होते है विषमपोषी  या परपोषी  जीव कहलाते है

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